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अ॒ग्निर्जा॑गार॒ तमृचः॑ कामयन्ते॒ऽग्निर्जा॑गार॒ तमु॒ सामा॑नि यन्ति। अ॒ग्निर्जा॑गार॒ तम॒यं सोम॑ आह॒ तवा॒हम॑स्मि स॒ख्ये न्यो॑काः ॥१५॥

English Transliteration

agnir jāgāra tam ṛcaḥ kāmayante gnir jāgāra tam u sāmāni yanti | agnir jāgāra tam ayaṁ soma āha tavāham asmi sakhye nyokāḥ ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। जा॒गा॒र॒। तम्। ऋचः॑। का॒म॒य॒न्ते॒। अ॒ग्निः। जा॒गा॒र॒। तम्। ऊँ॒ इति॑। सामा॑नि। य॒न्ति॒। अ॒ग्निः। जा॒गा॒र॒। तम्। अ॒यम्। सोमः॑। आ॒ह॒। तव॑। अ॒हम्। अ॒स्मि॒। स॒ख्ये। निऽओ॑काः ॥१५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:44» Mantra:15 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

जो सत्य की कामना करते हैं, वे सत्य को प्राप्त होते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (अग्निः) अग्नि के सदृश (जागार) जागृत होता है (तम्) उसकी (ऋचः) प्रशंसित बुद्धिवाले विद्यार्थी जन (कामयन्ते) कामना करते हैं, और जो (अग्निः) अग्नि के सदृश वर्त्तमान (जागार) जागृत होता है (तम्) उसको (उ) भी (सामानि) सामवेद में कहे हुए विज्ञान (यन्ति) प्राप्त होते हैं (अग्निः) के सदृश वर्तमान (जागार) जागृत होता है (तम्) उसको (अयम्) यह (न्योकाः) निश्चित स्थान युक्त (सोमः) विद्या और ऐश्वर्य्य की इच्छा करनेवाला (तव) आपकी (सख्ये) मित्रता में (अहम्) मैं (अस्मि) हूँ ऐसा (आह) कहता है ॥१५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो मनुष्य आलस्य से रहित पुरुषार्थी धार्मिक होते और जितेन्द्रिय विद्यार्थी होते हैं, उन्हीं को विद्या और उत्तम शिक्षा प्राप्त होती है ॥१५॥ इस सूक्त में सूर्य मेघ और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चवालीसवाँ सूक्त, तीसरा अनुवाक और पच्चीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

ये सत्यं कामयन्ते ते प्राप्तसत्या जायन्ते ॥१५॥

Anvay:

हे मनुष्या ! योऽग्निरिव जागार तमृचः कामयन्ते योऽग्निर्जागार तमु सामानि यन्ति अग्निर्जागार तमयं न्योकाः सोमस्तव सख्येऽहमस्मीत्याह ॥१५॥

Word-Meaning: - (अग्निः) पावक इव (जागार) जागृतो भवति (तम्) (ऋचः) प्रशंसितबुद्धयो विद्यार्थिनः (कामयन्ते) (अग्निः) पावकवद्वर्त्तमानः (जागार) (तम्) (उ) (सामानि) सामवेदप्रतिपादितविज्ञानानि (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (अग्निः) (जागार) (तम्) (अयम्) (सोमः) विद्यैश्वर्य्यमिच्छुः (आह) (तव) (अहम्) (अस्मि) (सख्ये) (न्योकाः) निश्चितस्थानः ॥१५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या निरलसाः पुरुषार्थिनो धार्मिका जायन्ते जितेन्द्रिया विद्यार्थिनश्च भवन्ति तानेव विद्यासुशिक्षे प्राप्नुतः ॥१५॥ अत्र सूर्यमेघविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुश्चत्वारिंशत्तमं सूक्तं तृतीयोऽनुवाकः पञ्चविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे आळशी नसतात. पुरुषार्थी, धार्मिक, जितेंद्रिय विद्यार्थी असतात त्यांनाच विद्या व उत्तम शिक्षण प्राप्त होते. ॥ १५ ॥